आज देशभर में Savitribai Phule की पुण्यतिथि मनाई जा रही है। वे जब स्कूल जाती थीं तो विरोधी लोग उन पर पत्थर फेंकते थे, उन पर गंदगी भी फेंक दिया करते थे। उनके बारे में सभी लोगों को जानना चाहिए कि उन्होंने समाज के लिए क्या-क्या किया, क्या-क्या संघर्ष किया, कितनी मुश्किलें झेली। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने समाज सुधारक और मराठी कवियित्री Savitribai Phule की पुण्यतिथि पर उन्हें नमन किया है।
Savitribai Phule की पुण्यतिथि 10 मार्च 1897
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र राज्य के सतारा जिले के नयन गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम खंदोजी नैवैसे था और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। सबसे महत्वपूर्ण बात सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं।
उस दौर में जातिवाद बहुत ज्यादा था। दलितों को शिक्षा का अधिकार नहीं था। महिलाओं को तो पढ़ाई की बिल्कुल भी अनुमति ही नहीं थी लेकिन Savitribai Phule उस दौर में खुद शिक्षित हुईं और समाज की कई महिलाओं के लिए भी शिक्षा के लिए मार्ग खोला। उन्हें भारत देश में महिला शिक्षा की अगुवा कहा जाता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन महिला के कल्याण में लगाया।
सावित्रीबाई फुले का विवाह ज्योतिराव फुले से 1841 में हुआ था। उनके पति ज्योतिराव फुले को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में भी माना जाता है।
विधवा औरतों का विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना Savitribai Phule का महत्वपूर्ण उद्देश्य रहा। वह भारत की पहली महिला शिक्षक, एक समाज सुधारक और एक कवियित्री भी थीं। उन्होंने जाति और लिंग के आधार पर लोगों के साथ हो रहे भेदभाव और उनके साथ हो रहे अनुचित व्यवहार को भी खत्म करने का बहुत प्रयास किया। उनकी मृत्यु प्लेग के कारण 10 मार्च 1897 को 66 वर्ष की उम्र में पुणे, महाराष्ट्र में हो गई।
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सावित्रीबाई फुले ने क्या-क्या मुश्किलें झेली
उन्होंने बहुत तरह की सामाजिक मुश्किलें झेली हैं। हमें उन्हें कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि उन्होंने हमारे समाज के लिए या हमारे लिए क्या-क्या किया, उन्हें हमें हमेशा याद रखना चाहिए। वे जब स्कूल जाती थी तो विरोधी लोग उन पर पत्थर फेंक दिया करते थे, उनके ऊपर पत्थर फेंक कर मार दिया करते थे, उनके ऊपर कूड़ा और कीचड़ तक फेंक दिया करते थे। लेकिन उस दौर में भी सावित्रीबाई फुले ने हार नहीं मानी और स्कूल जाना जारी रखा।
उस समय बालिकाओं के लिए स्कूल खोलना पाप माना जाता था। उन्होंने हर धर्म और हर बिरादरी के लिए काम किया। सावित्रीबाई फुले पूरे देश की महानियिका हैं। समाज की कन्याओं को शिक्षा देने के लिए उन्होंने खुद बहुत मुश्किल झेल कर पढ़ाई की। जब वे बालिकाओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर और पता नहीं क्या-क्या गंदी चीजें फेंक दिया करते थे। तब वे एक थैला लेकर चलती थीं जिसमें एक साड़ी हुआ करती थी और स्कूल पहुंचकर उस साड़ी को बदल लिया करती थी, जिस पर लोगों ने गंदगी फेंक दी थी।
Savitribai Phule ने बालिकाओं के लिए स्कूल भी खोला। वह सोचती थीं कि बालिकाओं को पढ़ाई के लिए संघर्ष न करना पड़े। इस वजह से उन्होंने 5 सितंबर साल 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश का पहला बालिका स्कूल स्थापित किया। इसके बाद उन्होंने बालिकाओं के लिए धीरे-धीरे करके 17 और स्कूलों का निर्माण भी कराया।
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