11 lines on Veer Savarkar: क्या सावरकर जातिवाद का समर्थन करते थे?

11 lines on Veer Savarkar जो हर किसी को जानना चाहिए। वीर सावरकर एक स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रवादी नेता थे। इस ब्लॉग में जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास रोचक बातें।

 

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Veer Savarkar के बारे में

वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक शहर के पास भगूर गांव में हुआ था। वीर सावरकर को विनायक दामोदर सावरकर के नाम से भी जाना जाता है। वे एक स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रवादी नेता होने के साथ-साथ वकील, लेखक, समाज सुधारक और हिंदुत्व दर्शन के सूत्रधार भी थे। उनके तीन अन्य भाई बहन थे। आईए जानते हैं उनके बारे में 11 रोचक तथ्य (11 lines on Veer Savarkar)

11 lines on Veer Savarkar

1. वीर सावरकर, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे।

2. वीर सावरकर पहले भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी।

3. वीर सावरकर ने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना कर दिया था। जिस कारण उन्हें वकालत करने के लिए रोक दिया गया था।

4. सावरकर ने जातिवाद के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और समाज को एकता और एकत्रित होने के लिए प्रेरित किया।

5. उनका मानना था कि भारतीय समाज को धार्मिक और सामाजिक विभाजन से मुक्त करना अत्यंत आवश्यक है।

6. वे एक सुप्रसिद्ध लेखक होने के साथ-साथ उन्होंने अपनी पुस्तकों के माध्यम से समाज को जागरूक किया।

7. वीर सावरकर द्वारा लिखी गई पुस्तक “द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस 1857” एक सनसनीखेज किताब रही।

8. वे विश्व के पहले ऐसे लेखक थे, जिनकी कृति 1857 का प्रथम स्वतंत्रता को दो-दो देशों ने प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया।

9. वीर सावरकर ने राष्ट्रध्वज तिरंगे के बीच में धर्म चक्र लगाने का सुझाव सर्वप्रथम दिया था, जिसे राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने माना।

10. सावरकर की स्नातक उपाधि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण अंग्रेज सरकार ने वापस ले लिया था।

11. भारत के स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रवादी नेता वीर सावरकर का निधन 26 फरवरी 1966 को हो गया।

 

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क्या सावरकर जातिवाद का समर्थन करते थे?

वीर सावरकर, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे, जिनका योगदान भारतीय इतिहास में अविस्मरणीय है। उन्होंने अपने विचारों और क्रियाओं से समाज को उत्थान की ओर प्रेरित किया, लेकिन कुछ विवाद उनके विचारों में भी हैं। इस ब्लॉग में, हम देखेंगे कि क्या सावरकर वास्तव में जातिवाद के प्रति समर्थन करते थे या नहीं।

सावरकर की विचारधारा समाज के पुनर्निर्माण को समर्थन करता था, जिसमें समाज की जातिवादी भावनाओं का समापन शामिल था। उनका मानना था कि भारतीय समाज को जातिवाद से मुक्त करने के लिए समाज को स्वयं में प्रत्येक व्यक्ति को समान देखने की आवश्यकता है।

उनके कई लेखों और भाषणों में वे सामाजिक समानता के पक्ष में अपनी बात रखते थे। उन्होंने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समाज की सामाजिक स्वतंत्रता के महत्व को उजागर किया। वे चाहते थे कि भारतीय समाज में हर व्यक्ति को उसकी क्षमतानुसार मौका मिले।

हालांकि, वे भारतीय समाज में धार्मिक एकता को बढ़ावा देते थे, जो उनके कुछ विचारों में जातिवाद के पक्ष में प्रकट होता है। उनके कुछ लेखों में वे जातिवाद के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हैं, जिससे यह प्रतीत होता है कि उनके विचार इस मुद्दे पर दोषारोपण करते हैं।

डॉ. अंबेडकर ने बौद्ध धर्म को अपनाया और लाखों दलितों को इस्लाम और ईसाई जैसे विदेशी धर्मों के शिकार होने से बचाया, जिससे भारत की आत्मा प्रभावित होती। सावरकर ने अंबेडकर के गैर वैदिक धर्म को अपनाने के कदम की सराहना की, लेकिन सावरकर का दृष्टिकोण अलग था। सावरकर दलितों के हिंदू धर्म से जुड़े रहने के पक्ष में थे, लेकिन उन्हें बाकी सभी लोगों के समान अधिकार दिए जाने चाहिए।

सावरकर के अनुसार दलितों को हिंदू धर्म में हर उस चीज तक पहुंच मिलनी चाहिए, जो पहले उन्हें नहीं दी जाती थी। सावरकर का मानना ​​था कि हिंदू धर्म से बौद्ध धर्म में लेबल बदलने से तब तक कोई फायदा नहीं होगा, जब तक कि दलितों के प्रति समाज का रवैया नहीं बदल जाता।

अब, विवाद की बात करें, तो सावरकर के विचार और उनके लेखों में यहां तक कि उनकी आत्मकथा ‘हिंदूपद पादशाही’ (Hindu Pad-Padshahi) में भी जातिवाद के पक्ष में कुछ बयान हैं। यहां तक कि कुछ लोग उन्हें जातिवादी और आर्य सुप्रेमेसिस्ट भी मानते हैं।

समाप्ति के रूप में, हम कह सकते हैं कि सावरकर का विचारधारा जातिवाद के प्रति अंधविश्वास को नकारता है, लेकिन वे कुछ मामलों में इसे समर्थन भी करते हैं। इसलिए, हमें उनके विचारों का समापन करते समय उनके विचारों को सावधानी के साथ और समझ से देखने की आवश्यकता है।


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